Total Pageviews

Tuesday 13 April 2021

अ॑तरीची वारी


मनी वारीची रे आस

माझा चालला प्रवास

लोक आषाडी, कार्तिकी

माझी अंतरी निरंतरी

 

रोमा रोमातून माझ्या

वाहे चंद्रभागेचा प्रवाह

पांडुरंगाची पालखी नित्य

अंतर-सॊहळ्यात

 

बाहेर गजराचा डोंब

टाळ मृदंगाचा थाट

आंत उभा पांडुरंग शांत

स्मित गूढ ओठांत

 

मन झाले पांडुरंग

काय विरली पंचत्वात

मी नाचतो निळ्या संगे

निळ्या हृदय डोहांत

 

शनिवार १०/०४ २०२१ १०:१० AM

अजय सरदेसाई (मेघ)


 
                                                                                                                                                


No comments:

Post a Comment