Total Pageviews

Tuesday, 24 October 2023

तू ये कर माँ, तू ये कर


माँ वध के शुंभ-निशुंभ को तुने विजय पताका लहराई ।
आज अश्विन शुद्ध दशमी ,उन दैत्यो को मोक्ष दिलवाई ।

मुझ में भी कई दैत्य बसे माँ , उनको तू मोक्ष प्रदान कर ।
माँ उन दैत्यों पर तू वार कर ,माँ उनका तू संघार कर I 

पहला दैत्य है काम माँ जो मेरे मन को जला रहा I  
मैं कबसे फसा हूँ उसकी पकड़ में, अटका हूँ उसकी जखड में I 
माँ मुझे इससे निजात दिला , उसपर प्रहार कर, माँ उसका संघार कर।

दुजा दैत्य देख इस क्रोध को ,सर पर मेरे तांडव ये कर रहा I 
मैं कबसे जल रहा इसके शोलों में और मन तप्त है अंगारों से I 
माँ मुझे इससे निजात दिला ,उसपर प्रहार कर, माँ उसका संघार कर।

तिजा दैत्य छुप बैठा यहाँ,ये लोभ जो मुझे हरदम डूबा रहा और मैं दुब रहा I 
ज़िन्दगी भर इसने सताया है मुझे , मृगतृष्णा का प्यासा बनाया मुझे I 
माँ इस तृष्णा से बचा मुझे ,उसपर प्रहार कर माँ, उसका संघार कर।

चौथा जो दैत्य है वो मद कहलाता है ,वह सर पर  मेरे मंडरा रहा I  
इसमें झुठा विश्वास भरा , भुद्धि में इसके भ्रम भरा , ये है दम्भ से भरा I 
इस झुठे विश्वास,भ्रम और दम्भ पर प्रहार कर, माँ उनका संघार कर।

पांचवा दैत्य लोभ है माँ , ये हर पल हर हरदम मुझे सता रहा I 
मेरे मन को ये  ललचा रहा ,  मेरी प्रदन्या को निचे दबा रहा  I 
इसके जोश को काट दे ,  माँ प्रहार कर, माँ उसका संघार कर।

छट्ठा दैत्य ये कायर मत्सर है , ये दिल में आग लगता है ।
किसी का अच्छा उसे भाता नहीं ,जल जल के राख होता है I 
इसके लपटों से मुझे बचा , माँ प्रहार कर  माँ उसका संघार कर।

कली युग का ये एक दैत्य है , जो पल पल मेरा शरीर कुरेत रहा I   
मधुमेह इसे कहते है ,ये हर रोग का कारन है ,शरीर में पीड़ा का साधन है I 
इस रोग का तू स्तंभन कर ,माँ प्रहार कर, माँ इसका संघार कर।

अब बारी है मेरे शरीर की ,माँ इसे स्वस्थ्य दे और दृढ़ कर I 
तिल तिल ये मृत्यु को लिपट रहा , बाहें पसारे  ये सिमट रहा I 
इस क्रिया को तू थम ले , उसे सशक्त कर ,माँ  शुद्ध कर।

मेरे मुलाधार चक्र को जागृत कर ,मेरी प्रवृत्तियों को माँ शुद्ध कर।

स्वाधिष्ठान चक्र को जागृत कर ,मेरा सहास बढा, मुझे दृढ़ बना,माँ शुद्ध कर।

मणिपुर का माँ भेदन कर उर्जा बढा, अंतरमुख बना,माँ शुद्ध कर।

अनाहत में आकर भय और तनाव को तु दुर कर ,माँ शुद्ध कर ।

विशुद्धी चक्र में तु बस जरा, सुमिरन तेरा बढता रहे,माँ इसे तु शुद्ध कर ।

आज्ञा में जब तु आएगी ,क्षमा भाव को मेरे सचेत कर मेरी भक्ति को तु दृढ़ कर,,माँ इसे तु शुद्ध कर ।

सहस्त्रार चक्र में जब तेरा प्रवेश हो,ये अनुभुती मिल जाए मुझे I  

सिर्फ तु ही तु है और कुछ नहीं, सब भ्रमों को दूर कर I
   
न मुज़से मेरा वास्ता रहे I 

न मैं राहु न तू रहे I 

सिर्फ एहसास वजूद का रहे I 

न उसका कोई नाम रहे , तू ये कर माँ, तू ये कर I



मंगलवार , दिनांक २४/१०/२०२३  (आश्विन शुद्ध दशमी =विजय दशमी ) , ०५:०५ PM 
अजय सरदेसाई (मेघ)

Wednesday, 18 October 2023

सही का चयन


Inspired from Mundakopanishad:  


मन तो है एक डाल का पंछी जो सुख और दुःख के बेर है खाता ।

उसी डाल पर है एक दुजा पंछी जो यह सब कुछ नहीं खाता।

देखता है सब कुछ साक्षी भाव से  सुख और दुःख से न उसका कोई नाता।

रेहता है हमेशा स्तितप्रज्ञ सा जो होता है वो बस देखता जाता ।

एक पंछी गर मन है तेरा तो दुजा हैं स्वयं परमात्मा ।

सही पंछी का जो चयन करो तभी तो मिलेगा परमात्मा ।


🙏🪷🙏

  मंगळवार,१८/१०/२०२३ ,९:०० PM

अजय सरदेसाई (मेघ) 

भगवंतासी कैसे ओळखावे



भगवंतासी भजावे भक्ती करोनी ।

पुजा पाठ याला तो ना पुसेची ।।


भक्ती करावी ठेवून सर्वांठायी एक भाव ।

उच्च निच जाती तेथे नाही ।।


भगवंतासी पहावे सर्वां ठायी ।

येरव्ही तो कुणासही न दिसे ।।


एकनाथां घरी राहीला तो जगन्नाथ ।

म्हणे त्याला श्रीखंड्या तो एकनाथ ।।


एकनाथ क्षण एक अडकले भाह्यांत ।

तिथे तुझी माझी गत काय असे ।।


म्हणोन म्हणे "मेघ" असावे तत्पर ।
पहावा तो एकची ईश्वर सर्वां ठायी।।

🙏♥️🙏


या कली युगांत, परमेश्वराला ओळखणे महा कठीण आहे. त्याला या मर्त्य लोकांत पहायचे असल्यास आपल्याला आपल्या कल्पनेतील स्वरुपाला पहीली तिलांजली द्यायला हवी. म्हणजे त्या परमेश्वराला एका साच्यात बसवून ठेवता नये.आपण परमेश्वराला आपापल्या कल्पनेतुन एका मर्यादित स्वरुपात अडकवण्याचा प्रयत्न करत आहोत. तो अमर्याद आहे. म्हणून त्याला सर्वां ठायी पहावे आणि सर्व रुपे ही त्याचीच आहेत हे लक्षात घ्यावे.

हे मी जे सांगत आहे ते सांगणे जरी खुप सोपे असले तरी ते अंगवळणी पडणे तितकेच कठीण आहे. जेथे एकनाथ महाराजांना १२ वर्ष ओळखता आले नाही तिथे आपली काय गाथा.

रामकृष्ण हरी 🙏

मंगलवार,१८/१०/२३ , ८:५२  AM
अजय सरदेसाई (मेघ) 

Sunday, 15 October 2023

दुर्गा स्तवन


 

महा दूर्गे हे भवानी माॅं ।

आ मेरे घर तु पधारकर।

मेरी भक्ति पर माॅं प्रसन्न हो । 

मेरी प्रार्थना का तु स्विकार कर ।

हे देवी माॅं तु कृपालिनी ।

तु दैत्यों की संहारीणी ।

मुझ में माॅं अनंत दैत्य बसे ।

 माॅं उन पर घनघोर वार कर । 

 माॅं तु उनका पुर्ण संघार कर ।

हे माता जगदंबा हे दियानिधे।

अपनी दृष्टी से न ओझल कर मुझे।

तु अपने कृपा कटाक्ष से देख मुझे।

मैं तेरा लाल हु माॅं तु संभाल मुझे।

है आश्विन शुक्ल प्रतिपदा आज।

तेरे आने का माॅं है दिवस आज।

ऐ माॅं तु जल्दी जल्दी मेरे घर पधार।

बिन तेरे मेरे सब बिघडे है काज ।

महा दूर्गे हे भवानी माॅं ।

आ मेरे घर तु पधारकर।

मेरी भक्ति पर माॅं प्रसन्न हो । 

मेरी प्रार्थना का तु स्विकार कर ।

।। बोलो अंबे माता की जय हो।।

🙏🪔🪔🙏

रविवार १५/१०/२०२३ , ३:५२ PM 

अजय सरदेसाई (मेघ)

Monday, 2 October 2023

बसुन तु विश्रांती घे रे


ज्या ज्या ठिकाणी हे मन जाय माझे

त्या त्या ठिकाणी असो हे निज रुप तुझे

मी ठेविले मस्तक ज्या ज्या ठिकाणी

तेथे तुझेची सद्गुरू मृदू पाय दोन्ही.

                            (समर्थ रामदास स्वामी)…………

……….. आणि पुढे


झरा वात्सल्याचा तुझ्या सतत वाहुदे रे I
करुणा तुझी मजवर अशिच राहु दे रे I

दृष्टी जेथे जेथे रे दत्तराजा जाय ही माझी I
तिथे तुझीच ही सुंदर मुर्ती मी पाहु दे रे I

तु फिरतोस जगी कल्याण करीत सर्व जनांचे I
जरासा विसावा दत्ता सदा मम हृदयी तु घे रे I

मधुर दुग्ध गायीचे हे घे करण्यास श्रम परिहार I
पेटवली पहा ही नाम धुनी बसुन तु विश्रांती घे रे I

 

सोमवार , दिनांक /१०/२०२३ , १०:१०

अजय सरदेसाई (मेघ)

 

अवधूत चिंतन श्री गुरुदेव दत्त

 🙏🔥🙏