Inspired from Mundakopanishad:
मन तो है एक डाल का पंछी जो सुख और दुःख के बेर है खाता ।
उसी डाल पर है एक दुजा पंछी जो यह सब कुछ नहीं खाता।
देखता है सब कुछ साक्षी भाव से सुख और दुःख से न उसका कोई नाता।
रेहता है हमेशा स्तितप्रज्ञ सा जो होता है वो बस देखता जाता ।
एक पंछी गर मन है तेरा तो दुजा हैं स्वयं परमात्मा ।
सही पंछी का जो चयन करो तभी तो मिलेगा परमात्मा ।
🙏🪷🙏
मंगळवार,१८/१०/२०२३ ,९:०० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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