भक्त
:
अब बहुत हुआ जगत जमघट
तुझे देख हुआ हृदय गदगद
आंखों से बह रहे आसू पटपट
तेरी दुनिया से मै उब गया नटखट
अब तो पास बुलाले झटपट
क्या मर्यादा पुरुषोत्तम राम है तू
क्यु खड़ा है पथ्थर बनकर यु
क्यु देखकर भी न
देख रहा है तू
क्या सिर्फ पत्थर दिल, पथ्थर की मुरत है तू
धर्म पर अधर्म का राज है अब
इस धरती पर म्लेच्छों का तांडव है अब
क्यु आंखें मुंद तुम शेश पर लेटे हो
क्यु फिर अवतार नहीं लेते हो
धर्म अब थरथर कांप रहा
अधर्म से ग्लानी में डुब रहा
क्यु पांचजन्य नही बजाते तुम
क्यु खडग और चक्र न उठाते तुम
कहॉं गया वो वचन तेरा
आऊंगा जब जब धर्म गिरा
आऊंगा तब तब जब अथर्म से पिडीत धरा
आजा अब और न राह देख
कलह में डूबा भारत वर्ष देख
आजा अपना वचन निभा
हे तारणहार अब तो दर्श दिखा
हे तारणहार अब तो दर्श दिखा
भगवान्:
धर्मं यः रक्षति तस्य धर्मः रक्षति।
क्या यह मेरा ही विधान तुम भुल गए
क्यु फिर हात मल तुम बेठे रहे
क्या नहीं अब धर्म पर विश्वास
धर्म में ही तो है मेरा निवास
अगर है मुझमें जो तुम को विश्वास
तुम स्वयं धर्म में रखो विश्वास
धर्म पताका लिए जो तुम आगे बढ़े
पाओगे हर पल मुझे साथ खड़े
मैं कहीं नहीं मै हुं यही सदा
मिटाने खड़ा हुं धर्म की हर बाधा
मै हुं हमेशा से वचन बद्ध
मैं ही कलकी हुं,मैं ही बुद्ध
जानो मुझे ज्ञान से ऐ सुबुद्ध
मैं ही धर्म हुं और मैं ही धर्मबद्ध
मंगलवार, २४/०९/२०२४,
१०:२४ AM
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