Total Pageviews

Friday 22 October 2021

Where There Is I There is Ego


 

Where there is I   there is Ego

Where there is Ego  there is Fear

Where there is Fear  there is Doubt

Where there is Doubt there is Failure

Where there is Failure  there is Hardwork  required.

Where there is Hardwork  there is Honesty

Where there is Honesty  there is Hope

Where there is Hope  there is Light

Where there is Light  there is Faith

Where there is Faith  there is Belief

Where there is Belief  , it comes from Self Experience

This Self Experience  leads to Self-Realization

Where there is Self-Realization there is Sat Chit Anand  or Pure Eternal Happiness

Where there is Sat Chit Anand  there is no I

Where there is no I

There is no Ego  Fear Doubt Failure Hardwork Honesty Hope Light Faith Belief    or the exact opposites of all these .

There is only Sat Chit Anand

This is the closest any one can come to describing HIM relatively, for further to this there is only IS & nothing else!

 This IS   is the ROOT    of our root.

The ESSENSE of our essence.

The infinitesimal BEGINNING of that SINGULARITY which is unbegun.

It is Imperishable & Unborn

It Transcends Time & Space. It is Infinite and manifests & expresses itself in infinite ways.

This is referred to as …………

Atman , Paramatman , Brahma , Parabrama , Allah ,Almighty

 

-मेघ-

16/11/2015


देवी स्तुती

 


देवी स्तुती 

ॐ श्री सरस्वतैलक्ष्मीदुर्गा एक रुपम।

पराशक्ति आदी माया  ईश्वरी तव नमस्कॄतम।

ब्रम्हा विष्णु महेश सदा करती तव भन्जनम।

 चतुर्विद पुरुषार्थ दाईनी  महादेवी त्वां ध्यायेसि नित्यं।  


-मेघ-

१५/१०/२०२१,९:३७ AM


Thursday 7 October 2021

मानस शिव व॑दना

ॐ प्रणवस्य शिवशंकरो परब्रम्हम I

पंचवक्रकं परमात्मनेन ध्यायेसि  नित्यं I

नित्यं शुद्धम शाश्वतं सिद्धम I

अगोचरं अव्ययं सर्वभूतानां अरुपं I

आदियोगीं अर्धोन्मलित नेत्रं  शुभंकरं I

कृपाकारं सर्वभयहरं सर्वकामार्थ सिद्धीदं I

अमृतेनाप्लुतं शान्तं निरंजनं भक्तवत्सलम I

द्वैताद्वैतं शिवशक्तीं एकरूपं मंगलम I   

चतुर्विध पुरुषार्थकारं सदाशिवम सुप्रसन्नम I

पुष्पम धुपम दीपम नैवेध्यम तव समर्पणम I   

कर्पुरार्तिम तद्नंतर अतिप्रेमे तव समर्पितं I

पश्चात करेत प्रदक्षिणां एवं शिरसाष्टांगवंदनं I

श्री सांबसदाशिव महारुद्र सप्तकेटेश्वर प्रियंताम् I

न मम I 

-मेघ-

०७/१०/२०२१ , ०१:३५ PM



प्रणवस्यतू प्रणवआहेस ( ओंकार नाद )

अगोचरं - इंद्रियातीत , अप्रकट

अव्ययं - अविकारी , विकार रहित 

सर्वभूतानां अरुपं - सर्व भूतां मद्ये आनंद स्वरूपाने असणारा

सर्वकामार्थ सिद्धीदं - सर्व इच्छा व कर्म सिद्दीस नेणारा 

अमृतेनाप्लुतं - अमृतमय ,अमृतयुक्त , अमृतात डुबलेला , भिजलेला, ने  भरलेला

निरंजनं - दोष रहित ,सर्व गुणसंपन्न 








 

Monday 4 October 2021

आम्हा न कळे ज्ञान

 

आम्हा न कळे ज्ञान

वेद पुराण आम्हा न कळे ।

आम्हा न कळे निती

धर्माधर्म आम्हा न कळे ।

आम्हा न कळे भक्ती

मुक्ति ची युक्ति आम्हा न कळे ।

देवा आम्हा एकची कळे आता ।

उठे शुळ हॄदयी तुझे विन ।

विनवी 'मेघ' आता नको जाऊस सोडून ।

जिव केला आत्म लिन चरणी तुझिया ।

 

-मेघ-

०४/१०/२०२१ ,१४:०८ PM



स॑त चोखा मेळा या॑च्या सुंदर अभ॑गाने स्फुरलेल्या वरिल ओळी



सदगुरौ आता तुच मज तारु

 


 मज अंगी न भक्ति गुण ।

न इंद्रिय दमन ते महा कठिण  ।

मज मन बुद्धि चे वारु हिन ।

फिरे सैरभैर दिशाहिन ।

उत्तम जन्म मज तु दिधला ।

री न साधे जे श्रेयस मजला ।

आता उरला एकची करु प्रकारु ।

ठेवितो मस्तक तव चरणी ।

सदगुरौ आता तुच मज तारु ।

-मेघ-

०४/१०/२०२१ , १२:३२ PM 

नव-विधा भक्ति


पहिले श्रवण दुजे कीर्तन I

फिर किजे मनमां नित्य स्मरण II

जब होवे तिनों अति स्वभावन I

पादसेवनं अर्चनं वन्दनं तबै मिले II

दास्य और सख्य को करो प्राप्त तुम I

फिर फलै अंतिम आत्म निवेदनम II

इस प्रकार कीजो नवविध भक्ति I

होवे सार्थ ये मानव जन्म उत्तम II

 

-मेघ-

४/१०/२०२१ , १०:३० AM


 

ज्ञान के कुछ मोती

 

छल कपट सो रित जगत कि सभी प्राणी करे सोय I

साधु ज्यो करे छल कपट सो साधु न होय II

मेघ

२/१०/२०२१ , १४:१२ PM

 

दुख में करे सुमिरन I

सुख में भोग मां खोय II

सुख दुख तो सम साधु भये I

दोनों में सुमिरन होय II

मेघ

२/१०/२०२१ ,०३:३३ PM

 

‘मेघ’ ‘कबिर’ सब आवै जावै उनका कोई न मोल I

जे कथि कहहीं मुख से उनै , जांण वही अनमोल II

सांचा एक  सुमिरन प्रभुका ते मन कि आँखे खोल I

प्रभुही सदगुरु में समायो सो तु सदगुरु सुमिरन डोल II

- मेघ-

३/१०/२०२१ , १३:१७ PM


लडकपन गयो खेल कूद मां और जवानी काम I

बुढो शरिर गयो थक हारो कसु करै सुमिरन पान  II

- मेघ-

३/१०/२०२१ , १३:१७ PM


इक गुरु कॄपा ही केवलम I

प्राप्त  करावै  कैवल्यम II

होवे पहिले  खुब  पिटाई I

फिर पिलावे घट अमृतं II  

-मेघ-

४/१०/२०२१ ,९:४३ AM


स्पंदनी अविरत विठ्ठल नाम

 



गा हो कीर्ती त्या  परब्रम्हाची

श्रोत्रांस चिन्मय अमृतपान घडूदे

शांत असो मन नच तृष्णा असुदे   

ह्रिदय-घट सारे अमृते भरुदे 

स्पंदनी अविरत विठ्ठल नाम असुदे

 

-मेघ-

३०/९/२०२१ , ३:३० PM


Saturday 2 October 2021

सदगुरु मोरे तूमही तारणहार

 


त्रितापे साधू तापै ज्यु धरती भास्कर ताप I

तबै उपजे भक्ती हृदय मा ज्यु भूमि उगले बाफ II

बाफ बने मेघ सावन को ते बरसावे नीर I

भक्ती बनै करुणा साधू कि ते भगावै जन-पिर II

तुही करावै तुही बनावै  सबके तूमही कारणकार I

कहत 'मेघ' जीवन-नैया तुम सौ॑पी सदगुरु मोरे तूमही तारणहार II


- मेघ-

२/१०/२०२१ , १२:२१  PM