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Tuesday 23 April 2024

हनुमान स्तुती


शिवंशाय ,भिम विक्रमाय ,तेजोनिधे जयोस्तुते

भुभूत्कार मात्रें खल विदारय ,संकट मोचन जयोस्तुते

सर्वविद् सर्वसाक्षी देवाशीषाय जयोस्तुते

रामदासाय, राम प्रियाय, भक्तराजाय नमोस्तुते,

वायुपुत्राय , मर्कटेशाय श्री हनुमंते नमोस्तुते

 

 मंगळवार  २३/०४/२०२४  ११:१५ AM

अजय सरदेसाई (मेघ)


Monday 22 April 2024

सूर्यः प्रजापतिः


सूर्यः प्रजापतिः  

सूर्यं ध्यायति तस्य वीर्यं बलवत्तरं भवति। 

सः प्रतिभावान् भवति।

शरीरस्य मृत्योः अनन्तरं सूर्यलोकं गच्छति। 

इति सत्यम्

 

सुर्य ही जनिता है। जो सुर्य का ध्यान करता है।उसका विर्य बलवान बनता है। वह प्रतिभावान बनता है।शरिर की मृत्यु के पश्चात वह सुर्य लोक जाता है। यही सत्य है।

 

सूर्य हा निर्माता आहे. जो सूर्याचे ध्यान करतो  त्याचे वीर्य बलवान होते।  तो प्रतिभावान होतो।शरीराच्या मृत्यु पश्चात तो सूर्य लोकांत जातो . हेच सत्य आहे।


The Sun is the creator. He who meditates on the sun, his semen becomes strong and virile. He becomes talented. After the body dies, he goes to the realm of the Sun. That is the Truth.


 

सोमवार २२//२०२४ १०:१० AM

अजय सरदेसाई (मेघ)


शब्द एव ब्रह्म।

शब्द एव ब्रह्म।वाक्तः शब्दाः उद्भवन्ति।वाक् एव ब्रह्म।श्रोत्रं शब्दस्य धाम।मनः वचनस्य भोक्ता। मनः एव ब्रह्म। योगी मनः बुद्ध्या सह विलीयते।योगी ब्रह्मा। प्राणः योगिनं शरीरे धारयति। अतः जीवनमेव ब्रह्म।प्राणःअग्नौ विलीयते।अग्नी एव ब्रह्म।तपस्यात् अग्निः जायते।तपः ब्रह्म।तपस्या कर्म।कर्म एव मनुष्याय लोकं ददाति।लोक एव ब्रह्म।मनः कर्माणि नियन्त्रयति बुद्धिः मनः नियन्त्रयति। योगी बुद्धेः स्वामी। योगी ब्रह्मा। योगी संस्कारेण बाध्यते। संस्कार एव ब्रह्म। संस्कारः नाम्ना सिद्धः भवति।नाम इति शब्दः शब्द एव ब्रह्म।

शब्द ही ब्रम्ह हे।शब्द वाणी से निकलता है। वाणी ही ब्रह्म है। श्रोत्र शब्द का निवास है और  मन शब्द का भोक्ता है।मन ही ब्रम्ह है। योगी मन को बुद्धी में विलीन करता है।योगी ही ब्रह्म है। योगी को प्राण शरिर में रखता है। अतः प्राण ही ब्रह्म है। प्राण अग्नी मे विलीन होता है।अग्नी ही ब्रह्म है।अग्नी तप से पैदा होता है।तप ही ब्रह्म है।तप ही कर्म है।कर्म ही ब्रम्ह है। कर्म ही मनुष्य को लोक प्रदान करता है लोक ही ब्रम्ह है कर्म को मन,मन को बुद्धी चलाती है। योगी बुद्धी का स्वामी है। योगी ही ब्रह्म है। योगी अनुष्ठान में बंद्धा है। अनुष्ठान ही ब्रह्म है। अनुष्ठान नाम से सिद्ध होता है।नाम ही शब्द है। शब्द ही ब्रह्म है।

शब्दच ब्रह्म आहे.वाणीतुन शब्द निघतात. वाणी स्वयें ब्रह्म आहे।श्रोत्र हे शब्दाचे निवासस्थान आहे आणि मन हे शब्दांह भोक्ता आहे. योगी मनाला बुद्धी मध्ये विलीन करतो. योगीच  ब्रह्म आहे. प्राण योग्यास शरीरात धरून  ठेवतो. म्हणून प्राणच ब्रह्म आहे. प्राण अग्नीमध्ये विलीन होतो . अग्निच ब्रह्म आहे. कर्मच माणसाला जग देते. लोक स्वतः ब्रह्म आहे.अग्नी तपांतून उद्भवतो , तप म्हणजेच ब्रम्ह . तप हे कर्म आहे . म्हणून कर्म हेच ब्रम्ह आहे ,कर्मच मनुष्याला लोक प्रदान करतं . लोक म्हणजेच ब्रम्ह .मन कृतींवर नियंत्रण ठेवते आणि बुद्धी मनावर नियंत्रण ठेवते. योगी बुद्धीचा स्वामी आहे. योगी ब्रह्म आहे. योगी अनुष्ठानाने ( शिस्त )बद्ध असतो. अनुष्ठानच ब्रह्म आहे. नामानेच अनुष्ठान सिद्ध होते .नाम शब्द आहे . शब्दच ब्रह्म आहे.

 

सोमवार  २२/०४/२०२४   ०८:३० AM

अजय सरदेसाई (मेघ)


Tuesday 16 April 2024

गे माझी दत्त गुरु माउली


गे माझी दत्त गुरु माउली

असुदे सतत कृपेची सावली

घेता तव नाम मिळे सुख अलौकिक

प्रकाश फांकला हृदयी आंतरिक

आई येई तू नी देई मज मुख दर्शन

किती पाहु वाट दे मम प्रियदर्शन

आई येई येई तु लवकर येई

तव भेटीची आस लागली मज ठाई

कृष्णातिरी नित्य वास्तव्य तुझेची

मिटवी तृष्णा लागली जी दर्शनाची

गे माझी दत्त गुरु माउली

असुदे सतत कृपेची सावली

 

मंगळवार १६//२०२४  :२३ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)


Sunday 14 April 2024

मुझे अपनी शरण में लेलो राम


मूल भजन तुलसीदस इस फिल्म से है।चित्रगुप्त ने संगीतबद्ध किया है और   G. S. Nepali जिन्होंने शब्द बद्ध किया है ।उसी मूल भजन से प्रेरित होकर ये मैंने भजन लिखा है । आशा करता हूँ के आपको पसंद आएगा।

 

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🌹 मुझे अपनी शरण में लेलो राम  🌹

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मुझे अपनी शरण में लेलो राम ,लेलो राम

मुझे अपनी शरण में लेलो राम

दिल से मैंने तुम को पुकारा (२) 

राम हे राम

दिल से मैंने तुम को पुकारा

क्यों दिया न तुने मुझे सहारा ,

चरण जुगल में जगह न हो तो (२)

चरण रज मे ले लो राम, लेलो राम

मुझे अपनी शरण में लेलो राम

 

शबरी के बेर स्विकारे

अहल्या के काज संवारे

आस न मेरी करो पूरी तो

राम हे राम (२)

आस न मेरी करो पूरी तो (२)

तुम ही कहो कहाँ जाऊ राम, जाऊ राम

मुझे अपनी शरण में लेलो राम ,लेलो राम

मुझे अपनी शरण में लेलो राम

 

मुझ पापी ने कितना ढूंढा

कही नज़र न आये राम

इस मूरत में अगर नहीं तो

राम हे राम (२)

इस मूरत में अगर नहीं तो(२)

ढूंडू कहाँ ये बताओ राम,बताओ राम

मुझे अपनी शरण में लेलो राम ,लेलो राम

मुझे अपनी शरण में लेलो राम

 

रविवार  १४/०४/२०२४  ०२:१० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

Saturday 6 April 2024

My Spirituality


In realms unseen, where souls align,

Ajay, as Megh, maintains a shrine.

His spirit roams, with eternal grace,

In quest of truths, in that sacred space.

 

With eyes aglow, and heart ablaze,

He wanders through the mystic haze.

Seeking essence, beyond the veil,

His journey's path, a sacred trail.

 

In chants and hymns, his voice ascends,

To realms where earthly sorrow ends.

With every breath, a prayer emerges,

With the Universe ,his essence merges.

 

Through meditation's silent dance,

He finds his soul's divine romance.

In every leaf, in every tree,

He sees the face of divinity.

 

Oh, Ajay, known as Megh, so true,

His spiritual passion, a radiant hue.

In every moment, he transcends,

And in his quest, he always ascends.

Ajay Sardesai (Megh)
Saturday   06/04/2024  , 05:05 PM