Total Pageviews

Friday, 24 May 2024

शिव

शिव ही सारांश है

सभी में शिवांश है।।

 

शिव ही दश दिशाओं में।

शिव ही अंतरमन में है।।

 

शिव ही तन,मन ,वाक है।

शिव ही हृदय का आलाप है।।

 

कण कण में शिव,हर जिव मे है शिव।  

शिव ही जगत हैं , शिव ही सर्वकाल है।।

 

मुलाधार से सहस्रसार तक शिव पिनाक है।

मन की प्रत्यंचा पर तना शिव, वैराग्य बाण है।।

 

मूलाधार में शिव गणेश है

स्वाधिष्ठान में शिव ब्रम्ह है ।।

 

मणिपुर में शिव जठराग्नि-यज्ञ है

स्तिथ जहाँ विष्णु-कमल  है ।।

 

अनाहत में शिव ओंकार नाद है।

विशुद्धि में शिव,रुद्राधिस्ठान है।। 

 

आज्ञा में शिव ,जीवात्मा है

सहरसार में शिव परमात्मा है ।।

 

शिव व्यतिरिक्त कुछ भी नहीं।

शिवातिरिक्त कुछ भी नहीं।।

 

शिव से सुंदर कुछ भी नहीं।

शिव से निरंतर कुछ भी हीं।।

 

शिव, शरीर का प्राण है।

शिव,जीव का कल्याण है।।

 

शुक्रवार  , २४/०५/२०२४ , ०७:३०

अजय सरदेसाई (मेघ)


No comments:

Post a Comment