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Tuesday, 4 March 2025

शिववर्णनम्

ब्रह्माण्डं सर्वं निनादितं शिवतांडवं शिवलोलितं।
स एव तामसिकं विनाशयति सात्विकस्य उद्भवम।
जगतं सर्वं कम्पितं य: शिवजटया चलितं।
मुखमण्डलं उष: भासितं एवं जटाजूटं रात्रिकं।
शिरस्तु चन्द्रशेखरं सुशोभितं कर्णकुण्डल तारामण्डलसदृशं।
कृपा निधानं लोचनं एवं भालमस्म लिंपनं।
वेलासमानं भुजंगः गले लिंपते स्तनयोर्रुद्राक्षमाला विलसितं।
बाहूषु च कमरे च सर्पाणां आभूषणानि विलसितानि, तस्या अन्यत: गजचर्म आवृतं।
बाहू बलदण्डाः मांडयः हिमालयसमानाः शक्तिमान्।
शिवपदं वन्दनीयं मोक्षं प्रददाति शरणागतं।
स एव शिवः हृदये वर्तते, शर्वेश्वरं साष्टाङ्गं प्रणमाम्यहम्।

 

मंगळवार, //२५ , १३:०७ hrs.
अजय सरदेसाई (मेघ
)

Sunday, 2 March 2025

नमो नमोजी शंकरा देवाधिदेव शंकरा


नमो नमोजी शंकरा
देवाधिदेव शंकरा
तेरे अनुपन तेज से
मेरे जिवन से तिमीर हरा
 
स्थितप्रज्ञ जो वो सांब तू
जिवन का आधार तू
कृपा की बरसात तू
चाहु जिसे वो आस तू
 
नमो नमोजी शंकरा
देवाधिदेव शंकरा
तेरे अनुपन तेज से
मेरे जिवन से तिमीर हरा
 
आदीनाद ओंकार तू
अनंत जो वो महाकाल तू
अक्राल तू विक्राल तू
कण भी तू विशाल तू
 
नमो नमोजी शंकरा
देवाधिदेव शंकरा
तेरे अनुपन तेज से
मेरे जिवन से तिमीर हरा
 
तू शांत भी और ऋद्ध तू
सुर असुरों का आराध्य तू
ब्रम्हांड थरथर जिसे कांपता
वो प्रलयंकारी रुद्र तू
 
नमो नमोजी शंकरा
देवाधिदेव शंकरा
तेरे अनुपन तेज से
मेरे जिवन से तिमीर हरा
 
तुझे जाने कौन निराकार तू
तू सभी कुछ सब आकार तू
सभी मे है शिव निवास तेरा
हर जिवनिर्जिव का आधार तू
 
नमो नमोजी शंकरा
देवाधिदेव शंकरा
तेरे अनुपन तेज से
मेरे जिवन से तिमीर हरा
 
तू श्वेत और सुंदर तू
भक्तों का प्रेम सागर तू
जिस सागर में है विष्णू धाम
वो आनंद का क्षिरसागर तू
 
नमो नमोजी शंकरा
देवाधिदेव शंकरा
तेरे अनुपन तेज से
मेरे जिवन से तिमीर हरा
 
तू आत्मा और परमात्मा तू
अखंड ब्रम्हांड की विश्वात्मा तू
तू ज्ञान ज्ञानी और  ज्ञानद भी तू
तू स्वयं मोक्ष और मोक्षद भी तू
 
नमो नमोजी शंकरा
देवाधिदेव शंकरा
तेतेरे अनुपन तेज से
मेरे जिवन से तिमीर हरा
 
रविवार, //२५ , १२:४६ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)

 


Saturday, 1 March 2025

तुज विन शंभो मज कोण तारी


कुल देव माझा सप्तकोटेश्वर निरंकारी

कृपा नी मायेची सावली धरी मजवर निरंतरी

जगाचा नियंता वसे हृदयी माझ्या अंतरी

तुज विन शंभो मज कोण तारी

 

जलाभिषेक मी धरला संतत शिवाच्या माथ्यावरी

सुवासिक शुभ्रफुले वाहतो मी शिव लिगांवरी

अर्धोन्मलित नेत्र मनमोहक स्मित त्याच्या मुखावरी

तुज विन शंभो मज कोण तारी

 

स्मरण तुझे होता मन माझे घेई भरारी

रोमांच उभे राहिले शरीरात कंप भारी

सिंहासनी बसला कर्पुरगौर शेजारी गौरी

तुज विन शंभो मज कोण तारी

 

आभा विलक्षण पसरली सभोवारी

शिवपुजनांत रमले पहा सर्व नर नारी

प्रसन्न होऊन पाहे भक्तांसी माझा त्रिपुरारी

तुज विन शंभो मज कोण तारी

 

जवळ आली शुभ घटिका ती मनोहारी

शिवाच्या गळ्यात पुष्प माळा घाली गौरी

माता उमेस पहा माझा चंद्रमौळी वरी

तुज विन शंभो मज कोण तारी

 

दुमदुमला मृदंग नाद, सभेत वाजली तुतारी

शिवगण नाचती होऊन मग्न आनंद लहरी

स्वर्गातुन बरसल्या अक्षता त्या कैलासावरी

तुज विन शंभो मज कोण तारी

 

बुडालो बुडालो रे आकंठ मी शिव भक्तीत

शिव माझ्यात विरला नि मी विरलो शिवांत

वृतांत काय वर्णु हा अजबभारी

तुज विन शंभो मज कोण तारी

 

बुधवार,२६//२५,१५:०७ hrs.

अजय सरदेसाई (मेघ)