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"""" गुरु शिष्य संवाद: चिंता काहे सताए ?""""
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शिष्य:
अब जब सबकुछ सौपा आपको फिर भी मनको चिंता काहे सताए ?
गुरु:
तुमने सबकुछ सौपा मुझको इस में नहीं कोई सच्चाई रे बिटवा नहीं कोई सच्चाई।
बस कहते हो के सबकुछ सौपा, लेकिन मन न सौप आए रे बिटवा मन नाही सौप आए !
मन भी जो मुझको सौपा होता तो चिंता कहाँ
से आए रे बिटवा चिंता कहाँ से आए !
तुम ने सोचा की सब कुछ सौपा मगर अहं रह गया रे बिटवा वो नहीं सौप पाए
, वो नहीं सौप पाए ।
वही अहं जो न छोडा तुने
वही मन कहलाए रे बिटवा वही तो मन कहलाए ।
तु ये समझत नाही रे बिटवा तु ये समझत नाही ।
और पुछत हमको के चिंता काहे सताए रे बिटवा तोहे चिंता काहे सताए ?
सोमवार, १८/१२/२३ , ९:५५
PM
अजय सरदेसाई ( मेघ )
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