सभी प्राणियों में बसा, निर्बाध असर।
अनगिनत युगों में हम घूमते जाएं,
वह हममें समाहित, बहता जाएं।
असीम और अगम्य,अद्वितीय और अतुलित उसका बल,
न कहीं है, फिर भी है सर्वत्र वह असीम और अचल।
हम उसमें बहे, जैसे लहरों का राग, भाव विभोर
वह स्थिर रहे, सशक्त और साधक के भाग ,अचर ।
वह कौन है, जो पास है ,फिर भी अपरिचित,
हम उसके भीतर प्रवाहित, फिर भी अछूते,न तल्लीनित।
चाहे वह हो या हम, एकदूसरे में समाहित हों,
हम फिर भी उसे न छूने पाए,सत्य साक्षी हो।
कौन है वह, इतना विराट और महान,
जो जन्महीन, अमर, अनंत काल के ध्यान।
वह शिव है, शाश्वत और निराकार,
वह सदाशिव है, परम सत्य का विस्तार।
वह रुद्र है, प्रचंड, निर्भीक और बलशाली,
वह महाकाल है, कालातीत, अविनाशी, निरंतराली।
हा,वह महाकाल है, असीमित ,डमरू उसका काल है ,
वह अक्राल है ,वह विक्राल है , हा वह महाकाल है।
शनिवार , ३०/११/२०२४ , २१:५५ hr।
अजय सरदेसाई (मेघ)
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