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Saturday, 30 November 2024

महाकाल


 वह सर्वत्र हैभीतर भी और बाहर, 

सभी प्राणियों में बसानिर्बाध असर।  

अनगिनत युगों में हम घूमते जाएं, 

वह हममें समाहित, बहता जाएं। 

 

असीम और अगम्य,अद्वितीय और अतुलित उसका बल, 

 कहीं हैफिर भी है सर्वत्र वह असीम और अचल। 

हम उसमें बहेजैसे लहरों का रागभाव विभोर  

वह स्थिर रहेसशक्त और साधक के भाग ,अचर  

 

वह कौन हैजो पास है ,फिर भी अपरिचित,

हम उसके भीतर प्रवाहितफिर भी अछूते, तल्लीनित। 

चाहे वह हो या हमएकदूसरे में समाहित हों, 

हम फिर भी उसे  छूने पाए,सत्य साक्षी हो। 

 

कौन है वहइतना विराट और महान, 

जो जन्महीनअमरअनंत काल के ध्यान। 

वह शिव हैशाश्वत और निराकार, 

वह सदाशिव हैपरम सत्य का विस्तार। 

 

वह रुद्र हैप्रचंडनिर्भीक और बलशाली, 

वह महाकाल हैकालातीतअविनाशीनिरंतराली।

हा,वह महाकाल हैअसीमित ,डमरू उसका काल है ,

वह अक्राल है ,वह विक्राल है , हा वह महाकाल है।


शनिवार , ३०/११/२०२४   , २१:५५ hr।

अजय सरदेसाई (मेघ) 

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