फ़िक्र-ए-फ़र्दा बन्दे तू न कर,
तू बस उसकी इबादत कर।
एक बार बस दिल से पुकार के देख उसे,
वक्त क्या है,मुक्कदर भी बदल जाएगा।
हर मुराद,हर दुआ तेरी होगी कुबूल,
चाहा जो तुमने उससे भी ज्यादा मिल जाएगा।
जमीं पर तू भटकता रहा उम्र भर,
तरसता रहा तू खुशी को उम्र भर।
खुशी तो ना मिली, मिला गम हर बदर ,
इस लिये कह रहा हुं मै कबसे हर बशर।
उसको दिल में जगा,उसका दीदार कर,
हाथ दुआ में उठे, फिर काहे का डर।
वो अंधेरों को रौशनी के उजालों में दे बदल,
तू देखता जा,जरा ठहर,जरा तू सबर कर।
फ़िक्र-ए-फ़र्दा बन्दे तू न कर,
तू बस उसकी इबादत कर।
एक बार बस दिल से पुकार के देख उसे,
वक्त क्या है,मुक्कदर बदल जाएगा।
हर मुराद,हर दुआ तेरी होगी कुबूल,
चाहा जो तुमने उससे भी ज्यादा तू पाएगा।
बुधवार ११/१२/२४ १२:३७ AM
अजय सरदेसाई (मेघ)
फ़िक्र-ए-फ़र्दा = कल की चिंता
इबादत = पूजा
मुक्कदर = नसीब
बसर = शहर , ठिकाना
बशर = व्यक्ति , इंसान
दीदार = दर्शन , साक्षात्कार
दुआ = प्रार्थना
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