रण चंडी तु कात्यायनी
सिंहवाहिनी तु रणखंभिनी
रक्तजिव्हा तु रक्तबिज मारीणी
छिन्नमस्ता तु रक्तपिपासनी
हे तारणहार सबका जिवन सवार
म्लेच्छों का वध कर हमको तु तार
संकट में धर्म है
धरती माँ विछिन्न है
राह तेरी देख रहे
सब गुणी जन है
अष्टभुजाओं मे शस्त्र लिए
सभी तेरे अस्त्र लिए
अंगार आंखों में लिए
मुखपर आवेश लिए
जिव्हा पर रक्त की प्यास लिए
दुष्टों को कंठस्नान कराने
तु धरती पर उतर आ
हे भक्त तारिणी हे म्लेच्छ मर्दनी
दुष्टों को ताडने तु इस जमीं पर आ
माँ जब तेरी नवरात्र है
क्यों हम गलितगांत्र है
देख
दुश्मन ने घेरा
कैसे
पूरा राष्ट्र है
प्रेम की आड़ में
प्रेम की दुकान में
देख कैसे बेच रहा
आतंक का सामान है
अपने ही देश में
दोस्त के भेस में
लूट रहा हमीको
हमारा मेहमान है
माँ अब तो कृपा कर
दुष्ट दोस्त का संघार कर
सनातन धर्म की रक्षा के लिए
माँ आ अब जल्दी आ
माँ आ अब जल्दी आ
रविवार , ०६/१०/२०२४ , १३:४० PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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