Total Pageviews

Sunday 6 October 2024

देवी स्तवन

रण चंडी तु कात्यायनी

सिंहवाहिनी तु रणखंभिनी

रक्तजिव्हा तु रक्तबिज मारीणी

छिन्नमस्ता तु रक्तपिपासनी

हे तारणहार सबका जिवन सवार

म्लेच्छों का वध कर हमको तु तार

संकट में धर्म है

धरती माँ विछिन्न है

राह तेरी देख रहे 

सब गुणी जन है

अष्टभुजाओं मे शस्त्र लिए

सभी तेरे अस्त्र लिए

अंगार आंखों में लिए

मुखपर आवेश लिए

जिव्हा पर रक्त की प्यास लिए

दुष्टों को कंठस्नान कराने

तु धरती पर उतर

हे भक्त तारिणी हे म्लेच्छ मर्दनी

दुष्टों को ताडने तु इस जमीं पर

माँ जब तेरी नवरात्र है

क्यों हम गलितगांत्र है

देख दुश्मन ने घेरा

कैसे पूरा राष्ट्र है

प्रेम की आड़ में

प्रेम की दुकान में

देख कैसे बेच रहा

आतंक का सामान है

अपने ही देश में

दोस्त के भेस में

लूट रहा हमीको

हमारा मेहमान है

माँ अब तो कृपा कर

दुष्ट दोस्त का संघार कर

सनातन धर्म की रक्षा के लिए  

माँ अब जल्दी  

माँ अब जल्दी  

 

रविवार , ०६/१०/२०२४  , १३:४० PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

 

No comments:

Post a Comment