तुम इतना जो मुस्कुरा रहे हो,
क्या राज है जो तुम छुपा रहे हो।।
जिंदगी ने जब जब मुझे गिराया,संभाला तुम्ही ने,
मिलने से फिर तुम इतना क्यों इतरा रहे हो ।।
जानता हुं तुम्हे मुहब्बत तो है मुझसे,
फिर तुम क्युं न खुलकर जता रहे हो ।।
जानता हुं,तुम से मिलने की हैसियत नहीं मेरी,
फिर भी तुम हो के मेरी आस बढ़ा रहे हो।।
कहते हैं की तुम हो हर कहीं,हर किसी में,
जादूगरी ये क्या है जो तुम कर रहे हो।।
बिनती कई जन्मों से है एक ही मेरी तुमसे स्वामी,
तमन्ना है मिलूं तुम्हें, और तुम हो की अनसुनी करे जा रहे हो।।
रविवार, १९/१/२०२५ , ०९:५२ AM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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