झीनी-झीनी बिनी साँई ने चदरिया
पंच तत्वों से बनी झीनी-झीनी चदरिया
माह दस लागे बुनन झिनी झिनी चदरिया
एक बार जिव को जो ओढाई चदरिया
मैली हो जाए रे वो झीनी-झीनी चदरिया
ज्युकेत्यु न कभी रहत फिर वो चदरिया
चाहे कबिर ही क्यों न ओढी हो चदरिया
मैली तो होनी है सत्य ही झिनी
झिनी चदरिया
पंचतत्व थी और पंचो में फिर मिल जाए चदरिया
अगला क्रम जब करना हो जीवको
चिव पहने फिर एक नयी झीनी-झीनी चदरिया
पंच तत्वो से जो बिनी साँई ने झीनी-झीनी चदरिया
सुनो रे सब सुर असुर नर नारी जो कहत कबिर हरदम सच नाही री
चदरिया जो ना हो मैली वैसी किसी जिव को कभी ओढने ना मिली री
रविवार दिनांक २८/१/२०२४ , ३:३६ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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