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Tuesday 27 August 2024

चल में और अचल में,


 

चल में और अचल में,व्यक्त में और अव्यक्त में

सुक्ष्म में और बृहद में, तुम्हारा ही संचार है

 

तु यहाँ है तु वहाँ है,तु जाने कहाँ कहाँ है

तु अणु से ब्रम्हांड तक व्याप्त ओंकार है

 

तू आदी अग्र मध्य है ,तू ही सर्व समग्र है

तेरे बिना क्या यहाँ,तेरी माया का विस्तार है

 

पञ्च-तत्त्व तेरे ही अंग,तेरे ही सप्त रंग है

तू राग है,तू ही शब्द में,तू गीत और छंद है

 

रंध्र में तू तू गंध में,तुही मकरंद में है

तू क्षर में,तू अक्षर में,तेरा ही प्रसार है

 

मरुत को,पर्वत को,और सागर अतल को

शजर को और फूल को,तेरा ही आधार है

 

तू वेद है,विद् भी तू ,तू विद्या का तेज है

तू आदी है ,अंत भी तू ,तू ही अनंत है

 

मंगलवार ,  २७/०८/२०२४   ०७:३५ PM

अजय सरदेसाई (मेघ)

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