ये ज्ञान ज्ञान जो तूम रटत रहे,बोलो कहाँ से आए।
जब इस शरिर से प्राण जाए है,ये ज्ञान कहाँ को जाए ।।
जिवन भर ग्रंथ पढ़ पढ़कर,कितना मिला ज्ञान।
अहंकार ही बढा पढ़ पढ़कर,और बढ़ा अज्ञान।।
काश ग्रंथ न पढ़ें होते,और सिखा होता सिर्फ प्रेम।
बस यह बात जो समझी होती , सभ कूछ होता क्षेम।।
ज्ञान से भक्ती बढ़ी और भक्ती से बडा उस्का नाम।
उस नाम का सुमीरन करो,बने सारे बीगडे काम।।
पतित पावन,मेरे मन भावन,तुम बिन दुजा कौन।
"मेघ" के मन में सदा बसे, तुम ही तो मेरे श्याम।।
जब इस शरिर से प्राण जाए है,ये ज्ञान कहाँ को जाए ।।
जिवन भर ग्रंथ पढ़ पढ़कर,कितना मिला ज्ञान।
अहंकार ही बढा पढ़ पढ़कर,और बढ़ा अज्ञान।।
काश ग्रंथ न पढ़ें होते,और सिखा होता सिर्फ प्रेम।
बस यह बात जो समझी होती , सभ कूछ होता क्षेम।।
ज्ञान से भक्ती बढ़ी और भक्ती से बडा उस्का नाम।
उस नाम का सुमीरन करो,बने सारे बीगडे काम।।
पतित पावन,मेरे मन भावन,तुम बिन दुजा कौन।
"मेघ" के मन में सदा बसे, तुम ही तो मेरे श्याम।।
बुधवार , ०७/०८/२०२४ ०२:१३ PM
अजय सरदेसाई (मेघ)
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