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Monday, 22 April 2024

शब्द एव ब्रह्म।

शब्द एव ब्रह्म।वाक्तः शब्दाः उद्भवन्ति।वाक् एव ब्रह्म।श्रोत्रं शब्दस्य धाम।मनः वचनस्य भोक्ता। मनः एव ब्रह्म। योगी मनः बुद्ध्या सह विलीयते।योगी ब्रह्मा। प्राणः योगिनं शरीरे धारयति। अतः जीवनमेव ब्रह्म।प्राणःअग्नौ विलीयते।अग्नी एव ब्रह्म।तपस्यात् अग्निः जायते।तपः ब्रह्म।तपस्या कर्म।कर्म एव मनुष्याय लोकं ददाति।लोक एव ब्रह्म।मनः कर्माणि नियन्त्रयति बुद्धिः मनः नियन्त्रयति। योगी बुद्धेः स्वामी। योगी ब्रह्मा। योगी संस्कारेण बाध्यते। संस्कार एव ब्रह्म। संस्कारः नाम्ना सिद्धः भवति।नाम इति शब्दः शब्द एव ब्रह्म।

शब्द ही ब्रम्ह हे।शब्द वाणी से निकलता है। वाणी ही ब्रह्म है। श्रोत्र शब्द का निवास है और  मन शब्द का भोक्ता है।मन ही ब्रम्ह है। योगी मन को बुद्धी में विलीन करता है।योगी ही ब्रह्म है। योगी को प्राण शरिर में रखता है। अतः प्राण ही ब्रह्म है। प्राण अग्नी मे विलीन होता है।अग्नी ही ब्रह्म है।अग्नी तप से पैदा होता है।तप ही ब्रह्म है।तप ही कर्म है।कर्म ही ब्रम्ह है। कर्म ही मनुष्य को लोक प्रदान करता है लोक ही ब्रम्ह है कर्म को मन,मन को बुद्धी चलाती है। योगी बुद्धी का स्वामी है। योगी ही ब्रह्म है। योगी अनुष्ठान में बंद्धा है। अनुष्ठान ही ब्रह्म है। अनुष्ठान नाम से सिद्ध होता है।नाम ही शब्द है। शब्द ही ब्रह्म है।

शब्दच ब्रह्म आहे.वाणीतुन शब्द निघतात. वाणी स्वयें ब्रह्म आहे।श्रोत्र हे शब्दाचे निवासस्थान आहे आणि मन हे शब्दांह भोक्ता आहे. योगी मनाला बुद्धी मध्ये विलीन करतो. योगीच  ब्रह्म आहे. प्राण योग्यास शरीरात धरून  ठेवतो. म्हणून प्राणच ब्रह्म आहे. प्राण अग्नीमध्ये विलीन होतो . अग्निच ब्रह्म आहे. कर्मच माणसाला जग देते. लोक स्वतः ब्रह्म आहे.अग्नी तपांतून उद्भवतो , तप म्हणजेच ब्रम्ह . तप हे कर्म आहे . म्हणून कर्म हेच ब्रम्ह आहे ,कर्मच मनुष्याला लोक प्रदान करतं . लोक म्हणजेच ब्रम्ह .मन कृतींवर नियंत्रण ठेवते आणि बुद्धी मनावर नियंत्रण ठेवते. योगी बुद्धीचा स्वामी आहे. योगी ब्रह्म आहे. योगी अनुष्ठानाने ( शिस्त )बद्ध असतो. अनुष्ठानच ब्रह्म आहे. नामानेच अनुष्ठान सिद्ध होते .नाम शब्द आहे . शब्दच ब्रह्म आहे.

 

सोमवार  २२/०४/२०२४   ०८:३० AM

अजय सरदेसाई (मेघ)


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